यज्ञ बढ़े सुर शक्ति बढ़े तुम वेद ऋचा स्वर में भर दे दो
गौ द्विज भू करते अति पीड़ित जो उनके उर में डर दे दो
द्रोह करें जन दण्ड उन्हें स्वयमेव सुनो तुम आकर दे दो
हे चतुरानन जाय प्रणाम तुम्हे मुझको इतना वर दे दो
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
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