Wednesday 29 May 2013

अग्रगण्य अग्रपूज्य गणपति को समर्पित दो छन्द



जो पितु कण्ठ भुजंग दिखें वह शुण्ड उठा निज कण्ठ फिराते
मस्तक इन्दु लखें मचलें फिर क्रोधित हों शशि भूमि पठाते
गंग जटा डमरू कर में लख के डम की ध्वनि संग नहाते
बाल गणेश पिता शिव के उर हर्ष भरें सुत धर्म निभाते

देख शिवत्व महागणनायक भी करते शिव सी हर लीला
शुण्ड भरें जल, शीश धरें, कि उछाल करें गिरिमण्डल गीला
जो वृषवाहन दृष्टि पड़े, मुख मूषक में रख मोदक पीला,
घोर अमंगल नष्ट करें पथ कोमल सा कर दें पथरीला
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

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