कुछ दोहा छन्द प्रस्तुत हैं-----
कभी कभी मन में उठें प्रश्न बड़े गम्भीर
उत्तर प्राप्त न हो सकें बढ़ती जाती पीर
स्वार्थ बढ़ा जग में बड़ा द्रोह करें जन आज
भ्रष्टाचारी हो गया पूरा श्रेष्ठ समाज
सीमा पर घुसपैठ है शत्रु बना है चीन
भारत क्यों पुरुषार्थ से आज लग रहा हीन
क्यों प्रसार में है सफल आसुर पन्थ व काम
रावण घर घर में बढ़े कब आओगे राम
प्रभु इतनी सामर्थ्य दो धरा बना दूँ आर्य
कलियुग में यद्यपि कठिन लगता है यह कार्य
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य, लखनऊ
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