१
मस्तक सोम धरा विष कण्ठ, न वैर यहाँ शिव ने पनपाया
शीश धरा निज गंग परन्तु ,न नेत्र तृतीय खुला न जलाया
वाहन सिंह दिया निज संगिनि, तो वृष ही अपने हित भाया
आज समन्वय चाह रहा यह भारत जो शिव ने सिखलाया
२
कण्ठ भुजंग अनेक पड़े, शिव चन्दन हैं, विष व्याप न पाया
पुत्र किये द्वय युक्त मयूर व मूषक से, न विरोध जताया
वैर महा जिनमे, उनको अपना कर के, गिरि धाम बसाया
आज समन्वय चाह रहा यह भारत जो शिव ने सिखलाया
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
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