Wednesday 26 June 2013

विवेकबुद्धि योग में रही


कालिमावसाद की प्रचण्ड रूप धार आज देख लो मनुष्यते! महान कष्ट दे रही
मानवीयता व धर्म का स्वरुप मेट देख अर्थ को प्रधान मान प्राण मूल्य ले रही
साधु में न साधुता तमोगुणी हुए समस्त सिन्धु की सुता प्रसार भाव लोभ के रही
जाग आर्य! जाग! तू महान है बली अपार ज्ञान भी तुझे विवेकबुद्धि योग में रही
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

Tuesday 25 June 2013

अधर्म के विनाश को

वन्दन विशेष-----
लेखनी चले अबाध राष्ट्रद्रोह के विरुद्ध और विश्व जान ले सनातनी प्रकाश को
त्याग दे समस्त लोक ये अकर्म या विकर्म और दे महत्त्व धर्मकर्म के पलाश को
आर्यवीर हो समर्थ ओज वीर्य तेज युक्त माँ उमंग भाव आज आप दो हताश को
अम्ब शारदा कृपा करो भरो महान शक्ति शब्द शब्द शस्त्र हों अधर्म के विनाश को
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Monday 24 June 2013

पूनम की रजनी

यह पूनम की रजनी प्रिय है स्वर गूँज रहे तव पायल के
रजनीश लखें अति व्याकुल हो मधु शीतल आज पियें जल के
हरते वह शील रहे बचना ऋषि पीड़ित थे इस भूतल के
यह पावस की ऋतु है इसमें रति काम सुधा बन के छलके
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Wednesday 19 June 2013

नेह सुधा छलके

सिंहावलोकन में दुर्मिल सवैया---

छलके ममता जब आँचल से शुचि काव्य प्रसाद तभी झलके
झलके उर भक्ति सुनो प्रिय माँ जब छन्द प्रबन्ध न हों हलके
हलके हलके मुंदतीं पलकें रसपान करें तव सम्बल के
बल के न कठोर प्रयोग बढें वर दो बस नेह सुधा छलके
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

जानते थे ये रहस्य

वीर्य नाश में निमग्न मानवीयता है भग्न किंचित महत्त्व भी मिले न शुद्ध नेह को
यौवन अपार शक्तियुक्त किन्तु काम नित्य, क्षीण ही करे समग्र मानवीय देह को
आर्य ये रहस्य जान हुए बड़े मेधावान धार ब्रह्मचर्य कहें सेव्य अवलेह को
कारण यही था तब जीवन सहस्त्र वर्ष आज मिलता नहीं शतायु किसी गेह को
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Sunday 16 June 2013

सनातनी प्रभाव छलके

एक सिंहावलोकन छन्द

छलके ममत्व पुत्र को मिले कवित्व शक्ति, शारदे! प्रसाद रूप छन्द मिलें ढल के
ढल के न सूर्य भी प्रकाश दे, कि मृत्यु पूर्व- चाह पूर्णता मिले भले मिले मचल के
चल के तुरन्त ही समीप आओ अम्ब आप, बुद्धि मरुभूमि में प्रसून हों कमल के
मल के अनेक दिव्य लेप आत्म कोश मध्य, रोम रोम से सनातनी प्रभाव छलके
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

Thursday 13 June 2013

सुवर्ण की लता दो माँ

अम्ब वन्दना के छन्द बनते नही हैं आज मुझसे अपार तुम रुष्ट क्यों बता दो माँ
वन्दना बिना है लेखनी भी अवरुद्ध मेरी ममता छिड़कती हो  इतना जता दो माँ
चाहता वसुन्धरा बनी रहे सनातनी ये इस हेतु धर्मराज का मुझे पता दो माँ
जागृत हों भारती के श्रेष्ठ पुत्र इस हेतु लेखनी से लिखवा सुवर्ण की लता दो माँ
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

Wednesday 12 June 2013

भो सविता!

एक कुण्डलिया छन्द ..

सविता के हम पुत्र हैं, दिव्य हमारा तेज
पर क्षमता कम हो गई, प्रिय हमको अब सेज
प्रिय हमको अब सेज, संग भी मात्र प्रिया का
वेदशास्त्र को भूल न लेते नाम सिया का
राष्ट्र जगे इस हेतु लिखूँ मै नियमित कविता
इसमें कुछ सहयोग करो तुम भी भो सविता!
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

दायित्वों से मत भागो

तुम्हे पुकारे भारत माता उठो वीर अब तो जागो
द्रोही घाती बढे बहुत हैं दायित्वों से मत भागो

कैसा शासन लोकतन्त्र कैसी परिपाटी बोलो तो
क्या थे हम क्या हुए जा रहे निज गौरव को तोलो तो
वीर शिवा राणा झाला की मातृभूमि सिसकी भरती
चक्र सुदर्शन हाथ धरो अवरुद्ध मार्ग को खोलो तो

तप का जीवन सदा श्रेष्ठ है उसे न किंचित भी त्यागो
द्रोही घाती बढे बहुत हैं दायित्वों से मत भागो

छोड़ पराक्रम काम अश्व को ढीला ढाला छोड़ दिया
क्यों लैला मँजनू शीरी फरहादों से मन युक्त किया
लव कुश अर्जुन भीम कर्ण की क्यों तुमको है याद नहीं
काले बालों गोरे गालों ने पौरुष क्यों लूट लिया

कवच ढाल का ही विष्टर हो अब गद्दों को मत तागो
द्रोही घाती बढे बहुत हैं दायित्वों से मत भागो

देखो शैलराज घायल हैं घायल पडी भारती हैं
फिर भी अपनी ममता तुम पर देखो नित्य वारती हैं
काल आ गया उस ममता का वीलों मोल चुका दो तुम
यही तुम्हारी श्रद्धा होगी यही सहस्त्र आरती हैं

कुण्ड प्रज्ज्वलित करो रक्त की अर्पित कर दो हवि यागो
द्रोही घाती बढे बहुत हैं दायित्वों से मत भागो

तुम्हे पुकारे भारत माता उठो वीर अब तो जागो
द्रोही घाती बढे बहुत हैं दायित्वों से मत भागो
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Monday 10 June 2013

राष्ट्रवाद कैसा हो गया

अडवानी के इस्तीफे पर  भारतवंशियों की त्वरित प्रतिक्रिया........

भारती ये राष्ट्रवाद कैसा हो गया लगता है स्वार्थवाद जैसा हो गया
मोदी देश के बने हैं ज्यो ही सम्बल
गैर दुखी और गया अपनों को खल
कैसी ये विडम्बना है दुःख के हैं पल
साथ छोड़ अडवानी कहाँ दिए चल
राष्ट्र था प्रसन्न पर्व ऐसा हो गया किन्तु घातनीति पद पैसा हो गया
भारती ये राष्ट्रवाद कैसा हो गया लगता है स्वार्थवाद जैसा हो गया
दल के पितामह हैं अब भी अटल
शरण गहो उन्ही की निकलेगा हल
अन्यथा तुम्हारा सुनो क्षीण होगा बल
फिर बोलो कैसे खिल पायेगा कमल
ये कदम यम वाला भैंसा हो गया चाहते विपक्षी जो थे वैसा हो गया
भारती ये राष्ट्रवाद कैसा हो गया लगता है स्वार्थवाद जैसा हो गया
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Sunday 9 June 2013

त्रिलोक व्याप लेंगे हम

कैसा भी तिमिर हो अमावसी प्रभाव लिए निश्चित है गहराई पूरी माप लेंगे हम
ज्ञानवान हो सकेगा एक दिन कण कण ढोलक से उत्सवी सुदिव्य थाप लेंगे हम
देखना गभस्ति का प्रसार इतना करेंगे पौरुष प्रकाश से त्रिकाल नाप लेंगे हम
सत्व रज तम का बना के सन्तुलन फिर सत्य है कि पूर्ण ये त्रिलोक व्याप लेंगे हम
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Friday 7 June 2013

विप्र उठो संकल्प लो

पाप बढ़ा तुम रोक लो करो तपस्या आज
विप्र उठो संकल्प लो धर्म करे अब राज !!दो०!!१

विप्र तपे यदि जीवन में तन में तब निश्चित रोग नहीं हैं
विस्मृत यों न करो तुम ज्ञान तुम्हे कब सिद्ध प्रयोग नहीं हैं
आज प्रलोभन हैं इतने जग में जितने कुल भोग नहीं हैं
सोच धरा पर पालन धर्म करें दिखते वह लोग नहीं हैं

है अभक्ष्य जो त्याग दो मत खाओ तुम प्याज
विप्र उठो संकल्प लो धर्म करे अब राज !!दो०!!२

मस्तक चन्दन भूषित हो शुचि वेद ऋचा रसना नित गाये
नित्य शिवत्व बढे तव जीवन मानवता हित गीत सुनाये
आसुर वृत्ति दबे तुमसे शठ साहस ही न कभी कर पाये
भारत हो द्विज सोच अखण्ड व आर्य ध्वजा फिर से लहराये

आर्य धरा पर फिर सुनो गिरे न कोई गाज
विप्र उठो संकल्प लो धर्म करे अब राज !!दो०!!३

दान करो नित ज्ञान समस्त प्रबन्धन भी जग को सिखलाओ
एक मनुष्य नहीं हर जीव महत्त्व रखे यह बात बताओ
शोषण ठीक नहीं तुम भूसुर हो हर शोषक को समझाओ
जो ऋषि वाक्य उन्हें अपनाकर पूर्ण धरा तुम आर्य बनाओ

होगा हर दिन पर्व फिर नित्य सजेगा साज
विप्र उठो संकल्प लो धर्म करे अब राज !!दो०!!४
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Thursday 6 June 2013

बस मानव


अमरत्व प्रदायक पायस को...... इतिहास कि पा सकता बस मानव
गिरिराज उठा कर के अंगुली पर...... विश्व हिला सकता बस मानव
सुन कार्य न एक असम्भव है..........पुरुषार्थ बढ़ा सकता बस मानव
फिर द्वेष विनाशन ही जग को प्रिय क्यों न सिखा सकता बस मानव
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Wednesday 5 June 2013

वीरता कहाँ गयी


क्यों अधर्म का प्रसार आर्य भूमि मध्य आज धर्म वृद्धि वाली वो कहो लता कहाँ गयी
काल को भी जीत लेने वाला दुष्ट मार दिया बोल युद्ध वाली वो प्रवीणता कहाँ गयी
कहाँ गयी कालिया को नाथने की शक्ति और वज्र देह दान नीति भी बता कहाँ गयी
अंशुमान वाली वो महान ज्वाला उदरस्थ कर जो सके बता वो वीरता कहाँ गयी
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

प्रिये सींचो

मुझे कस लो सुनो भुजपाश में बस जोर से भींचो
अतल उर के हमारे घाव को औषधि बनो खींचो
विषैले बाण अन्तस को निरन्तर छेद देते हैं  ....
अरे उर वाटिका को नेह से कुछ तो प्रिये सींचो
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Tuesday 4 June 2013

क्यों न ज्ञान हो रहा

राम के समान जग में न कोई और बन्धु
किन्तु नाम का ही आज अपमान हो रहा
ब्रह्म का स्वरुप हैं परन्तु ये विडम्बना कि
असुरों से युक्त कर राम गान हो रहा
सीता राम है महान मन्त्र इसको बिसार
बार बार व्यर्थ साईं राम ध्यान हो रहा
राम के पगों की एक अंगुली के एक नख
के समान भी नहीं वो क्यों न ज्ञान हो रहा
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Monday 3 June 2013

जीवन बदल गया

देखते ही देखते ये जीवन बदल गया, और बदला है मम राष्ट्र परिवेश भी 
कोई चीर से विहीन करता सरस्वती को, कोई खींचने लगा है जननी के केश भी 
आँधियाँ चली हैं द्रोह की समग्र विश्व आज, घोर तम से घिरे हैं देख लो दिनेश भी 
शक्तिहीन से लगें सनातनी समस्त देव, और अपशब्द झेलते हुए महेश भी 
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

Sunday 2 June 2013

काजल है


प्रिय ध्यान धरूँ तुमने उर पे अधिकार किया वह घायल है
यह सत्य प्रिये तव जीवन ही मम जीवन का शुचि सम्बल है
शशि के सम है मुख मंजु प्रकाशित मग्न हुआ यह भूतल है
मुझको वश में कर ले तव रूप अनूप बना कर काजल है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ