अम्ब वन्दना के छन्द बनते नही हैं आज मुझसे अपार तुम रुष्ट क्यों बता दो माँ
वन्दना बिना है लेखनी भी अवरुद्ध मेरी ममता छिड़कती हो इतना जता दो माँ
चाहता वसुन्धरा बनी रहे सनातनी ये इस हेतु धर्मराज का मुझे पता दो माँ
जागृत हों भारती के श्रेष्ठ पुत्र इस हेतु लेखनी से लिखवा सुवर्ण की लता दो माँ
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
वन्दना बिना है लेखनी भी अवरुद्ध मेरी ममता छिड़कती हो इतना जता दो माँ
चाहता वसुन्धरा बनी रहे सनातनी ये इस हेतु धर्मराज का मुझे पता दो माँ
जागृत हों भारती के श्रेष्ठ पुत्र इस हेतु लेखनी से लिखवा सुवर्ण की लता दो माँ
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
sunder bahut sunder
ReplyDeletebahut abhaar nareshrelm ji
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