Tuesday 4 June 2013

क्यों न ज्ञान हो रहा

राम के समान जग में न कोई और बन्धु
किन्तु नाम का ही आज अपमान हो रहा
ब्रह्म का स्वरुप हैं परन्तु ये विडम्बना कि
असुरों से युक्त कर राम गान हो रहा
सीता राम है महान मन्त्र इसको बिसार
बार बार व्यर्थ साईं राम ध्यान हो रहा
राम के पगों की एक अंगुली के एक नख
के समान भी नहीं वो क्यों न ज्ञान हो रहा
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

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