Wednesday 31 July 2013

तप्त रक्त युक्त हो शिरा शिरा

दिव्य भाव का प्रवाह लेखनी करे सदैव शब्द शब्द शक्तिपात आर्यवीर में करे
तप्त रक्त युक्त हो शिरा शिरा शरीर मध्य ओज शक्ति वीर्य तेज वो महानता भरे
शत्रु को विवेकहीन शक्तिहीन दे बना व धर्मद्रोह वृत्ति भूमि से वही सदा हरे
वेद वेद-अंग का प्रसार दिग्दिगन्त हो कि आर्यधर्म के लिए जिए मनुष्य या मरे
रचयिता
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Monday 29 July 2013

शुभ दर्श दिखाओ

एक छन्द- मत्तगयन्द
आज चमत्कृत सा कर माँ इस जीवन में कुछ हर्ष दिखाओ
झंकृत वाद्य महाध्वनि भी किस भाँति उठे शत वर्ष दिखाओ
दो मुझको महनीय तपोबल .....भोग छटें प्रतिकर्ष दिखाओ
अम्बर आप अनादृत दो कर ..अम्ब मुझे शुभ दर्श दिखाओ
रचयिता
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Wednesday 17 July 2013

खड़े हम हैं


हनु पर काला तिल और लाल ये कपोल
मस्तक चमक रहा अक्षि मीन सम हैं
उर तन्त्रिका के सभी तार झंकृत हुए हैं
दन्तपंक्ति किंचित न मौक्तिकों से कम हैं
धनु के कमान जैसी भवें लख चकित हूँ
इन्दु मंजु आभा मुख निशायें पूनम हैं
अब न विलोक किसी और को प्रियम्वदे तू
तेरी दृष्टिपात याचना में खड़े हम हैं
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Monday 15 July 2013

गणात्मक घनाक्षरी (आशुतोष छन्द)



वेदना अपार चित्त में भरी हुई कि हाल दीन का बुरा मनुष्यता रही न शेष है
राजनीति भ्रष्ट राष्ट्र शत्रु से कुद्रष्ट कष्ट में पड़ी स्वभूमि देख व्याप्त मात्र क्लेश है
धर्म क्षेत्र में अधर्म का प्रसार है विराट और धर्म केतु जीर्ण शीर्ण क्षुद्र वेश है
काल आ गया कि आर्य त्याग दे प्रमाद आज भारती पुकारती पुकारता स्वदेश है

मित्र हो अदम्य साहसी उठो स्वचाप धार तीर वृष्टि हो अतीव तीव्र शत्रु वक्ष पर
वक्र दृष्टि आसुरी भले रहें परन्तु ध्यान ये धरो कि आर्यवीर श्रेष्ठ एक लक्ष पर
भोग और राष्ट्र द्रोह में निमग्न दुर्ग देख आज ही करो प्रहार दुष्ट भ्रष्ट कक्ष पर
ओज शौर्य शक्ति दो दिखा महान धर्म हेतु  पूर्ण विश्व घूमने लगे स्वराष्ट्र अक्ष पर
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
लखनऊ 

Thursday 11 July 2013

माह रमजान

राजा राम के ही ध्यान का है माह रमजान उनके ही ध्यान साधना में डूब जाओ तुम 
रोज़ा व्रत उपवास नाम चाहे जो भी दे दो किन्तु मास यही बन्धु हर्ष से मनाओ तुम 
वेदपाठ करो या कि गुरुवाणी पढो या कि पढ़ के तराबी मानवीय गीत गाओ तुम 
विश्व उग्रवाद से भले न लड़ पाए किन्तु उग्रवादियों को एक हम हैं दिखाओ तुम 
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

Wednesday 10 July 2013

आर्याह्वान


महाकष्ट में जन्मदात्री हमारी सुधा का तभी दिव्य प्याला लिए हूँ
अरे ध्यान दो शक्ति का पुञ्ज हो भारती के लिए पुष्पमाला लिए हूँ
उठो आर्य वीरों तुम्हे दे सकूँ मै महाशक्ति से युक्त भाला लिए हूँ
नहीं चूकना है मुझे हाथ में मै महाक्रान्ति की रौद्र ज्वाला लिए हूँ
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Tuesday 9 July 2013

भारत माँ हित ही गहना है

अति सीमित होकर के सुन लो जग मध्य नही हमको रहना है
सम वायु प्रवाह समग्र धरा हमको अब निश्चित ही बहना है
असुरत्व प्रसारित, दुर्ग सुनो इसका क्षण ही भर में ढहना है
तप योग व ज्ञान व मानवता शुचि भारत माँ हित ही गहना है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Sunday 7 July 2013

महा-अभिषेक करेंगे

हम सेवक जीवन अर्पित माँ, हित धर्म सुकर्म प्रत्येक करेंगे
यह विश्व समस्त बना कर आर्य, विनष्ट सदा अविवेक करेंगे
जन से जन का हम कण्ठ मिला, वसुधा भर को फिर एक करेंगे
कुछ धैर्य धरो हम भारत माँ! तव राज्य महा-अभिषेक करेंगे
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

Friday 5 July 2013

हम पोषक हैं तुम मारक हो

एक डॉक्टर साहब जिनको आप सभी जानते हैं, उन्हें मेरा जवाब-----

हम उत्सव के क्षण नित्य गहें तुम रोदन के क्षण धारक हो
हम आत्म निरीक्षण में रत हैं तुम आसुर वृत्ति प्रसारक हो
पुरुषार्थ पथी हम हैं समझो तुम पाप कुकर्म विचारक हो
हमसे अपनी तुलना न करो हम पोषक हैं तुम मारक हो

शुचिता हमको प्रिय है तुम तो कटु सत्य अशौच प्रचारक हो
अभिमान हमें निज माँ पर है भगिनी तक के तुम हारक हो
तप त्याग सुमन्त्र पढ़ें हम तो तुम भोग सदा व्यवहारक हो
हमसे अपनी तुलना न करो हम पोषक हैं तुम मारक हो

हम मानवता हितचिन्तक हैं तुम घोर अमंगल कारक हो
हम रक्षण में रत हैं जग के तुम तो घनघोर प्रहारक हो
जड़ जंगम में हम ईश लखें करते तुम कर्म विदारक हो
हमसे अपनी तुलना न करो हम पोषक हैं तुम मारक हो
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ