Tuesday 9 July 2013

भारत माँ हित ही गहना है

अति सीमित होकर के सुन लो जग मध्य नही हमको रहना है
सम वायु प्रवाह समग्र धरा हमको अब निश्चित ही बहना है
असुरत्व प्रसारित, दुर्ग सुनो इसका क्षण ही भर में ढहना है
तप योग व ज्ञान व मानवता शुचि भारत माँ हित ही गहना है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

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