Tuesday 28 January 2014
Friday 17 January 2014
'आशुनिकुञ्ज' सवैया छन्द
हिन्दी साहित्य को चमत्कृत कर देने वाला छन्द 'आशुनिकुञ्ज' सवैया छन्द जिसे आज तक हिन्दी साहित्य के किसी साहित्यकार ने नहीं लिखा बड़े हर्ष और आह्लाद के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ...स्नेहाकांक्षी हूँ--
दीनों को देती हो लोकों को खेती हो पाता है वो भी जो हारा हो अम्बे!
धर्मालम्बी लोगों के पापों को धो देने वाली गंगा की धारा हो अम्बे!
दुष्टों को संहारा सन्तों को उद्धारा वीणा को धारे हो तारा हो अम्बे!
काली हो दुर्गा हो ज्वाला मातंगी हो त्रैलोकी तेरा जैकारा हो अम्बे!
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
दीनों को देती हो लोकों को खेती हो पाता है वो भी जो हारा हो अम्बे!
धर्मालम्बी लोगों के पापों को धो देने वाली गंगा की धारा हो अम्बे!
दुष्टों को संहारा सन्तों को उद्धारा वीणा को धारे हो तारा हो अम्बे!
काली हो दुर्गा हो ज्वाला मातंगी हो त्रैलोकी तेरा जैकारा हो अम्बे!
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
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